शिव-पूजा का फल
मथुरा नगरमें दाशार्ह नामक एक यदुवंशी राजा राज्य करता था। वह बड़ा ही गुणवान्, उदार और शूर था। उसके राज्य में प्रजा और ब्राह्मण बहुत ही सुख-शान्ति से रहते थे। पड़ोस के राजा उसका लोहा मानते थे। राजा की स्त्री भी अत्यन्त रूपवती और परम पतिव्रता थी। उसका नाम कलावती था।
एक दिन राजा कामातुर हो अपनी रानी के पास रंगमहल में गया। रानी उस दिन व्रत करके शिव की उपासना में रत थी। उसने राजा को अपने पास आने से मना किया, क्योंकि शास्त्र का आदेश है कि व्रतस्थ स्त्री के साथ पुरुष का समागम नहीं होना चाहिये। परंतु राजा ने न माना, वह जबरदस्ती रानी का आलिङ्गन करने के लिये आगे बढ़ा; किंतु जैसे ही रानी के समीप पहुँचा उसके शरीर के ताप से वह जलने लगा। तब उसने चकित होकर इस ताप का कारण पूछा।
रानी ने उत्तर दिया-‘महाराज ! मैंने शिवमन्त्र की दीक्षा ली है, उसी के जप की यह महिमा है कि कोई भी मनुष्य मुझे व्रत से च्युत नहीं कर सकता। आप भी चाहें तो गर्गमुनि से इस मन्त्र की दीक्षा ले अपने को निष्पाप और सुरक्षित बना सकते हैं।’ कलावती के मुख से इस बात को सुनते ही राजा बहुत प्रसन्न हुआ और गर्गमुनि के आश्रम में पहुँचा। मुनि को साष्टङ्ग प्रणाम कर राजा ने शिवषडक्षरी-मन्त्र के उपदेश के लिये उनसे प्रार्थना की।
मुनि ने राजा को यमुना में स्नान करवाकर शिव की षोडशोपचार पूजा करवायी। तत्पश्चात् राजा ने मुनि का दिव्य रत्नों से अभिषेक किया। इससे प्रसन्न हो मुनि ने अपना वरद हस्त राजा के मस्तक पर रखा और उसे षडक्षरी-मन्त्र का उपदेश दिया। मन्त्र के कान में पड़ते ही राजा के हृदयाकाश में ज्ञान-सूर्य का उदय हुआ और उसका आज्ञानान्धकार नष्ट हो गया।
उस मन्त्र का ऐसा विलक्षण प्रभाव दिखलायी दिया कि क्षण भर में राजा के सारे पाप उसके शरीर से कौओं के रूप में बाहर निकल गड़े। उनमें से कितनों के पंख जले हुए थे और कितने तड़फड़ाकर जमीन पर गिरते जाते थे। जिस प्रकार दावाग्नि से कंटक-वन दग्ध हो जाता है, वैसे ही पापरूप कौओं के भस्मीभूत होने से राजा को महान् आश्चर्य हुआ। उसने गर्गमुनि से पूछा कि ‘एकाएक मेरा शरीर ऐसा दिव्य कैसे हो गया ?’
मुनि बोले-‘ये जो कौए तुम्हारे देह से निकले हैं सो जन्म-जन्मान्तर के पाप हैं।’ राजा ने शिवमन्त्र के उपदेश के द्वारा निष्पाप बनाने वाले उन परमगुरु गर्गमुनि को बारम्बार प्रणाम कर उनसे विदा माँग अपने घर को प्रस्थान किया
“ॐ नम: शिवाय”
जय शिवशक्ति
हर हर महादेव
जय माँ भवानी